लवकुश शुक्रवार रात करीब 9 बजे पूरे परिवार के साथ पैदल ही लुधियाना से निकले और करीब 24 घंटे का सफर तय करने के बाद वह चंडीगढ़ के हल्लोमाजरा पहुंचे। यहां उनके गांव के कुछ और लोग रहते हैं। काम बंद होने की वजह से वह भी किराया देने में असमर्थ थे तो मकान मालिक बार-बार परेशान कर रहा था। ऐसे में वह लोग भी लवकुश के साथ पैदल चल पड़े।
कुल 15 लोग शनिवार रात करीब 11 बजे पैदल ही अंबाला के लिए निकले और अगले दिन सुबह अंबाला पहुंचने से पहले सब्जी लेकर जा रहे एक ट्रक चालक ने उन्हें सहारा दिया और पूरे परिवार को दिल्ली के बाहर छोड़ दिया। इसके बाद पैदल यात्रा फिर शुरू हो गई और यह लोग किसी तरह धौला कुंआ पहुंचे और कई घंटे इंतजार करने के बाद उन्हें लखनऊ के लिए बस मिल गई। खबर लिखे जाने तक लवकुश का परिवार लखनऊ पहुंचने वाला था। लवकुश ने बताया कि अभी यात्रा खत्म नहीं हुई है। लखनऊ से आगे कैसे जाएंगे, यह भी भगवान भरोसे है।
मालिकों की बेरुखी से आहत हैं मजदूर
मजदूरों के पलायन के पीछे मकान मालिकों और ठेकेदारों की बेरुखी बड़ी वजह है। 21 दिन के लॉकडाउन के बाद मालिकों ने राशन आदि देने से इंकार कर दिया, जिसके बाद मजदूरों के पास अपने गांव जाने के सिवा और कोई रास्ता नहीं बचा। ठेकेदारों और मकान मालिकों की यह बेरुखी बिहार व उत्तर प्रदेश से आए सभी मजदूरों के साथ है। ऐसे समय में जब मालिकों को इन मजदूरों का साथ देना चाहिए था, तो उन लोगों ने अपने हाथ खींच लिए।
राजस्थान के लिए निकले भूर सिंह, बोले- पत्नी-बच्चे अकेले हैं, घर जाने दो साहब
राजस्थान के लिए निकले लोगों से ने कहा…
राजस्थान कैसे जाएंगे, पता नहीं गांव में पत्नी-बच्चे अकेले हैं। यहां पर काम बंद हैं। जो पैसे थे, वो लगभग खत्म हो गए हैं। गांव न जाएं, तो कहां जाएं। हम सभी मुल्लांपुर से पैदल निकले हैं और राजस्थान के करौली जाना है। अभी पता नहीं कैसे जाएंगे।
– भूर सिंह, मजदूर
मुल्लांपुर में ही काम करने वाले करीब 11 लोग भी दो दिन पहले पैदल ही निकले थे। वह पैदल ही चले लेकिन उन्हें रास्ते में मदद मिल गई और किसी तरह घर पहुंच गए हैं। उनसे ही हमें हिम्मत मिली और फिर घर जाने के लिए निकले हैं। – देव सिंह, मजदूर
550 किमी है, किसी न किसी तरह पहुंच ही जाएंगे काम चल नहीं रहा है तो यहां रह कर क्या करेंगे। परिवार भी अकेला है, हमे भले ही दिक्कत होगी लेकिन किसी तरह घर तो पहुंच जाएंगे। हम नहीं चाहते कि इस मुश्किल की घड़ी में परिवार को अकेला छोड़ दें। 550 किमी है दूर है घर लेकिन किसी न किसी तरह पहुंच ही जाएंगे।
– पूरन सिंह, मजदूर